अविस्मरणीय याद

    आधी रात का समय था। खिडकी के बाहर से शीतल चाँदनी और मन्द पवन का स्पर्श मैंने अनुभव किया। घर के सभी सदस्य निद्रा में लीन थे। केवल मुझे हीं नीन्द नहीं आथी। आज भी मेरा मन उसकी यादों में मग्न था। बिस्तर से उठकर मैं मेज़ पर रखी हुई उसकी तस्वीर को देखने लगी। उसका हँसता चेहरा और चमकीली आँखें देखकर मैं फिर कुछ पुरानी बातें सोपने लगी। जब कभी मैं उसे देखती थी, उस के मुख में वही हँसी छायी रहली थी। उसकी प्यार भरी बातें, करुणा से भरी चमकीली आँखें, सुन्दर मुस्कान सब कुछ, हर एक को उसकी और आकर्बित करती थी।
    मेरी और उसकी पहली मुलाकात रेलवेस्टेशन पर हुई थी। रेलगाडी का इन्तजार करेत हुए बैठते समय वह मेरे पास आथी और ट्रैन के बारे में पूछने लगी। बातचीत के दौरान ही हमारे बीच देस्ती की शुरुआत हुई थी। बातें करते हुए हम दोनों को पता चला कि हम एक ही कालिज में पढते थे। उसका नाम वीणा था। कालिज में वह नयी - नयी आयी थी।
    कुछ ही दिनों में वह मेरी सब कुछ बन गयी, मेरी सबसे प्यारी सहेली। मैंने अपने बारे में  सब कुछ उससे कहा लेकिन ज्यादा नहीं। जब में दुखी रहती थी वह कुछ न कुछ कहकर मेरा दुख दूर करती थी। मुझे उसे संतुष्ट रखने की आवश्यकता ही नहीं पडती थी। क्योंकि वह सदा ही प्रसन्न दिखाई पडती थी। हमारे बीच की दोस्ती सिर्फ दो साल की थी। इस बीच कभी भी मुझे वह दुखी नहीं नज़र आयी थी। उसका एकमात्र अपनी नानी थी। वीणा उन्हें बहुत प्यार करती थी। वह भी हमेशा के लिए उसे छोडकर चली गली।
    कल मुझे अचानक फेन आया कि वीणा अस्पताल में है। उसने ज़हर खाथी। मुझे इस बात पर बिलकुल भी विश्वास नही हुआ। मैं अस्पताल पहूँची तो जान गयी कि वह ऐ.सी.यू में हैं। उसकी स्थिति बहुत नाजुक थी। होश आने पर वह सिर्फ मेरा नाम पुकार रही थी। मैंने अन्दर जाकर उसे देखा। उसकी हालत मैं बरदाश्त नहीं कर सकती थी। उसकी चमकीली आँखें प्रकाशहीन हो गयी थी और उसका वह सुन्दर चेहरा चेतनाहीन और सफेद हो गया था। मुझे देखकर वह रोने लगी। वह मुझसे कुछ कहना चाहती थी, पर उसकी वह कोशिश विफल हो गयी। उसकी ऐसी हालत होगी ऐसा मैं सपनों में भीसोच नहीं सकती थी। मेरा दिल बेचैन था। बस ईश्वर ही अब मेरा आश्रय था।
    सोचते-सोचते काफी समय बीत गया। सुबह होते ही मैने अस्पताल जाने की तैयारियाँ की। तब अस्पताल से फोन आया कि वीणा मुझे देखना चाहती है, उसकी हालत बिगडती जा रही थी। मैं तुरंत ही अस्पताल पहूँची। वह दर्द से तडप रही थी। मुझे देखते ही उसने मुझे अपनी पास बुलाया। मैं ने अपने आँसू छिपानें की कोशिश की पर रोक न सकी। वह मुझे दे देखती ही रही। फिर मुस्कुराकर उसने मुझसे क्षमा माँगी। मैं ने उससे कहा कि तुम्हें कुछ नहीं हौगा। वह सिर्फ मुस्कुरा रही थी। कुछ ही समय में उसका दर्द बढने लगा। उसने मेरा हाथ ज़ोर से पकडा और एक दीर्घनिश्वास लेकर मुझे पुकारा। डाक्टशें का परिश्रम बेकर निकला। वह मुझे छोडकर चली गयी।

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