विविध भाषाआें में हिन्दी की प्रधानता - अंजना

 भाषा विचार विनिमय का माध्यम है। भाषा से ही मनुष्य अपने मन की भावनाओ को दूसरों तक पहूँचाता है। मानव अन्य जानवरों से भाषा के कारण अलग है। भारत वैविध्य से भरी देश है। यहाँ विविध वेश-भूषा, संस्कार, भाषा, आदि दिखाई देते हैं। विविधता में मकता भारत को अन्य देशों से अलग करती है।
    भारत बहु भाषाआें से पूर्ण है। हिन्दी, उर्दु, पंजाबी, तुलु, कन्नड, तेलुगु, मलयालम, तमिल आदि भाषाएँ भारत के विविध भाषाआें से कुछ है। इनमें प्रमुख हिन्दी भाषा है। हिन्दी भाषा राष्ट्रीय चेतना एवं एकत्व का सर्वाधिक शक्तिशाली माघ्यम बन गई है। यह भाषा समूचे भारत को एकता के सूत्र में बाँधने की क्षमता रखती है। अनेक भाषाआें से संपन्न विशाल भारत-राष्ट्र में एक संपर्क भाषा के रूप मे हिन्दी का महत्व सुविदित है। भारतीय संविधान ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा एव राजभाषा का गौरवपूर्ण पद दिया है। हिन्दीतर प्रदेशों में भी बहुत पहले से ही इसका प्रयोग संपर्क-भाषा के रूप में चल रहा था।
    दाक्षण से उत्तर तक का एक सूत्र में बाँधने की क्षमता रखने वाली

राश्ट्रीय चेतना से भरपूर हिन्दी भाषा का महत्व सुनिश्चित है। यह भारतीय संस्कृति और देशीय साहित्य का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम है। भारत के विविध धर्मी, वर्गी, जातियों और दार्शनिकों ने इसे अंगीकार किया है। भारतीय संविधान में हिन्दी को देश की संस्कृति की अभिप्यक्ति की सशक्त वाहिका के रूप में स्वीकार किया है। हिन्दीतर प्रदेशों में भी इसका प्रयोग सम्पर्क भाषा के रूप में चल रहा था। स्वतंत्रता के बाद से हिन्दी को राष्ट्रभाषा का पद प्राप्त हुआ, तब से इसके विकास का क्षेत्र गतिशील हो गया है।
    दक्षिण की मुख्यत: चार सशक्त भाषाआें से संपन्न क्षेत्रों में भी हिन्दी अथवा हिन्दुस्तानी का अपयोग एक संपर्क भाषा के रूप में कई शताब्दियों से चला आ रहा था। तीर्थयात्रियों, प्यापारियों और विद्वानों ने इसका उपयोग किया, किन्तु हिन्दी का एक प्यवस्थित और स्विकृत रूप नहीं था। भारत में स्वतंत्रता संग्राम के आविर्भाव से हिन्दी भाषा को भी राष्ट्रीय महत्व मिला। गाँधीजीने दक्षिण में हिन्दी प्रचार का केन्द्र मद्रास को निश्चित किया और अपने पुत्र देवदास गाँधी को इस नई हिन्दी प्रचार सभा का कार्यभार सौंपा। गाँधिजी का लगाया वह बीज आज वटवृक्ष हो पल्लवित, पुष्पित और फलयुक्त हो गया है। सारे दक्षिण प्रदेशों में लोगों ने हिन्दी को दिल से अपनाया और उसे सिखकर गाँधीजी का सपना पूरा।

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